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स्वयं को सुधारने से समाज सुधार होगा

दूसरों को अपनी बात मानने के लिये बाध्य करना सबसे बड़ी अज्ञानता है। यहाँ हर आदमी एक दूसरे को समझाने में लगा हुआ है। हम सबको यही बताने में लगे हैं कि तुम ऐसा करो, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था। तुम्हारे लिये ऐसा करना ठीक रहेगा।            ये सब अज्ञानी की अवस्थायें हैं ज्ञानी की नहीं। ज्ञानी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह किसी को सलाह नहीं देता, वह मौन रहता है, मस्ती में रहता है, वह अपनी बात को मानने के लिए किसी को बाध्य नहीं करता है।           इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि यहाँ हर आदमी अपने आपको समझदार और चतुर समझता है और दूसरे को मूर्ख एवम नासमझ । सम्पूर्ण ज्ञान का एक मात्र उद्देश्य अपने स्वयं का निर्माण करना ही है। बिना आत्म सुधार के समाज सुधार किंचित संभव नहीं है।  "" हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ""                                                  

भविष्यवाणी किताबों से नही इष्ट कृपा से होती है।

 क्या आप जानते हैं? यदि हम इष्ट संकेत से सही भविष्यवाणी करने में सफल होते हैं, तो हमें इष्ट शक्ति का आभार माना चाहिए। हमें कभी यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम तो केवल मात्र माध्यम हैं, मिडिएटर हैं। जब तक हम विनम्र हैं कृतज्ञ हैं , इष्ट शक्ति हमारे साथ रहेगी । मां सरस्वती का वरदान हम पर बरसता  रहेगा । जब हम अनाधिकृत चेष्टा करके  पुष्टि में लग जाएंगे तब ज्योतिष का दिव्य ज्ञान एवं इष्ट शक्ति दोनों हमारे साथ छोड़ देंगे।  हम मात्र गणितज्ञ बनकर रह जाएंगे जन्मपत्री बना लेंगे दशाएं निकाल लेंगे और उनके आधार पर की गई हमारी भविष्यवाणी सही सीधी नहीं होगी। इसलिए ध्यान रहे कि हमें निर्गन्ध पुष्प बनने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए।  इष्ट कृपा से ही ज्योतिषी अपने ज्ञान के कारण ज्योतिष फलित पुष्प से सुगंध फैलाते हैं,  अन्यथा हम एक निर्गन्ध पुष्प है। इष्ट कृपा साधना से प्राप्त होती है। मशीनें साधनाएं नहीं कर सकती क्योंकि वह निर्जीव है , आत्मा व चैतन्य शक्ति से शुन्य वह जड़ पदार्थ है।  अतः कंप्यूटर इत्यादि मशीनें आदमी को गणितीय सहायता दे सकती है किंतु फलित नहीं यह तो उसके साधना पर निर्भर करता है।

सृष्टि निर्माण और ज्योतिष 1

भाग 1  आपका कल्याण हो !आशा करते है आप सब सकुशल होंगे "  आजकल कोरोना महामारी ने विश्व को अस्त व्यस्त कर दिया ,हम सभी एक डर लेकर जीवन यापन कर रहे है । आज आपको जीने की कला के अंतर्गत आपसे बात कर रहे है ,मित्रो जीवन मरण सब प्रभू के हाथ है ,सब कुछ प्रारब्ध में तय किया जा चुका है इसमे किसको कब क्या किससे क्यों  किसलिये मिलना है अब प्रश्न उठता है तो कर्म का क्या महत्व है ,,,मित्रो कर्म करने का अर्थ ये शास्त्रों में नही कहा है कि फल के कर्म करो ,पुराणों में कहा गया है सब कुछ निर्णय आपके ऊपर है आप प्रारब्ध के सुख दुःख को भोगने के साथ नवीन सद्कर्मो कर्मो के द्वारा पुनः पुण्यों को अर्जित करो।। भटको नही केवल कर्म करो ,अब इसमे ज्योतिष का क्या महत्व है आगे  बात करते है ।। पुरण पंडित  हरि हरो विजयते